मार्क्सवादी दृष्टिकोन: बी.आर. अम्बेडकर
मार्क्सवादी दृष्टिकोन: बी.आर. अम्बेडकर
बी.आर. अम्बेडकर (1891-1956) भारत में एक प्रमुख सामाजिक सुधारक, न्यायविद् और राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने राष्ट्र के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वह दलितों (पूर्व में "अंत्यज" के रूप में जाने जाते थे) के अधिकारों की प्रतिष्ठा करने के लिए निरंतर प्रयास करने में प्रसिद्ध हैं। जबकि अम्बेडकर दलित आंदोलन और जातिवाद के खिलाफ लड़ाई से जुड़े हुए हैं, उनके विचार और कार्य भी एक मजबूत मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य को दर्शाते हैं।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:
एक दलित परिवार में पैदा होने के बावजूद, बी.आर. अम्बेडकर को समाज में विभेद और सामाजिक अलगाव का सामना करना पड़ा। हालांकि, उन्होंने असाधारण संयम दिखाया और शैक्षिक दृढता से पढ़ाई की। उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी, संयुक्त राज्य अमेरिका, और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, यूके में उच्च शिक्षा प्राप्त की। यह अनुभव उन्हें विभिन्न दर्शनिक और समाज-राजनीतिक विचारों, सहित मार्क्सवाद से भी रूबरू कराया।
मार्क्सवादी प्रभाव अम्बेडकर पर: अम्बेडकर को विदेश में रहते समय मार्क्सवाद का प्रभाव उनके समाजिक और आर्थिक असमानता को समझने में महत्वपूर्ण रूप से दिखा। मार्क्सवाद ने एक सिद्धांतिक ढांचा प्रदान किया जिससे उन्हें भारतीय समाज में मौद्रिक विवेकी तंत्रों को समीक्षात्मक अध्ययन करने में मदद मिली।
भूमि सुधार और आर्थिक न्याय:अम्बेडकर को यह अनुभव हुआ कि आर्थिक असमानता समाजिक असमानता से गहरे रूप से जुड़ी होती है। उन्हें यह बात समझ में आई कि अंत्योदय और संसाधनों की समापन्नता कुछ विशेष जातियों के हाथ में रहने से बहिष्कार और एकाधिकार का चक्र प्रसारित होता है। मार्क्सवाद के सिद्धांतों से प्रेरित होकर, अम्बेडकर भूमि सुधार और संसाधनों के पुनर्वितरण के लिए आंदोलन चलाते रहे।
वर्ग संघर्ष और जाति उत्पीड़न: मार्क्सवादी विचारधारा ने अम्बेडकर के मन में समाज को वर्ग संघर्ष के रूप में देखने को उत्तेजित किया। उन्होंने जाति व्यवस्था को वर्ग शोषण के एक रूप के रूप में देखा, जहां ऊपरी जातियों ने प्रमुख स्थान रखा और निचली जातियों को उत्पीड़ित किया। इस उत्पीड़न का सामना करने के लिए, अम्बेडकर ने निचली जातियों को एक संगठित राजनीतिक शक्ति में संगठित करने का प्रयास किया, जिससे जाति वर्गीकरण पर चुनौती दी जा सके और उन्हें उनके अधिकारों और मानसिकता की मांग की जा सके।
अस्पृश्यता का समापन: अम्बेडकर की नायकत्वपूर्ण गतिविधियों का मुख्य ध्येय अस्पृश्यता का समापन और दलितों के समृद्धि में लगातार योजना रखना रहा है। उनके सोचने का समय मार्क्सवादी उपायोग करने ने उन्हें सामाजिक न्याय की दिशा में विश्वासी और उत्साही बनाया। अम्बेडकर की एकतार्की समाज, जाति वर्गीकरण के उन्मूलन के लिए उनकी बातचीती और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए उनके धैर्य के आधार पर आज भारत में सामाजिक कार्यकर्ताओं और नीति-निर्माताओं को प्रेरित करती है। अम्बेडकर की समाज में एकता, जातिवाद से मुक्ति, और सामाजिक समानता की दृष्टि भारत में समाजिक न्याय की लड़ाई में अभिभूत करती है। उन्हें आधुनिक भारत के मुख्य निर्माताओं में से एक के रूप में माना जाता है, जिन्होंने देश के लिए एक और अधिक न्यायपूर्ण और समावेशी समाज के निर्माण के लिए नींव रखी।